तत्त्वज्ञान से उत्पन्न निर्वेद अन्य सब स्थायियों को दबा लेने वाला है और उनकी अपेक्षा अधिक स्थायित्व वाला भी है।
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तत्त्वज्ञान से उत्पन्न निर्वेद अन्य सब स्थायियों को दबा लेने वाला है और उनकी अपेक्षा अधिक स्थायित्व वाला भी है।
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अपनी जिद, अपनी जड़ता और अपने अहं ब्रह्मास्मि के अहंकार में डूबे भारत के दो सबसे बड़े (शायद कुल दो) विचार धारात्मक संगठनों ने इस क्रांति को कुचलने में जिस अद्भुत एकता और समन्वय का परिचय दिया वो सिविल सोसायटी के एम.बी.ए. छाप प्रबंधन पर बहुत भारी पड़ा, उस पर भी दांतों तले उंगली दबा लेने वाला आश्चर्य कि ये ‘जनद्रोही' की भूमिका से न सिर्फ बचे रहे और जनक्रांति की तोपों को सहारा देकर उनका मुंह ‘दस जनपथ' और ‘नार्थ ब्लाक' की ओर करते रहे।